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Thursday, 17 August 2017

"कलम से "


उसके चले जाने से वक्त जरूर बेवफा हुआ,
पर दुआ तो आज भी वफाई की डोर पकडे हुए है ! (1)

आज सब कुछ खोकर भी
खुद को अमीर मानते हैं,
अगर अमीरी के बाज़ार में मिलती है बेवफाई,
तो अमीर होकर भी खुद को गरीब मानते हैं ! (2)

कैसे करें यकीन दिल का,
यह तो फिर यादो के समुन्दर में डूब गया ! (3)

ज़िन्दगी भी कैसे अजीब खेल खेलती है,
उसी को पाने की उम्मीद रखती है जिसे कायनात ने ठुकरा दिया ! (4)

सच की तालाश में निकले थे,
पर झूठ की अँधेरी गलियों में खो गए,
सच तो कोशिश कर रहा था रौशनी पाने की,
पर झूठ के कारखानों में बेरहमी से मारा गया ! (5)

हाथो की लकीरें तो पहले भी अपना वजूद ढून्ढ रही थी,
गुलाब से नहाकर अब कांटो से सजी हैं ! (6)

दिल तो पहले भी गुलाम बन बैठा था,
आज जब आज़ाद होना चाहता है
तो उसकी आवाज़ ने दिल में घर बना लिया ! (7)

वोह जो लिख दिया था नाम वक्त पे,
आज वही पानी की तरह बह गया कहीं दूर ! (8)

उसकी कलम मेरे दिल से यूँ जाकर टकराई,
लगता है जैसे फिर कोई कहानी शुरू होने को है ! (9)

कभी की नहीं दोस्ती रात से,
आज पूछ बैठे हाल चाँद का,
कभी अँधेरे ने की थी अलविदा,
आज पहली बार अपना सा लगा ! (10)

लिखे थे कुछ खत उनको वफाई के,
क्या पता था लौटा देंगे वो बेवफाई से,
यूँ तो वादे हज़ार कर बैठे थे वो साथ चलने के,
पर दिल को कुरेद बैठे थे राख की तरह,
आंसू तो गिरे ही थे अपनी पहचान पाने के लिए,
पर जल से गए थे मोहोब्बत की आग मिटने के लिए ! (11)

एक शाम थी ऐसी,
जो दिल में घर कर गई,
जाते जाते दुआ में सलाम दे गई ! (12)



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